Gaurav Gautam

[07/05, 2:32 PM] ‪+91 88603 68267‬: #मनुस्मृति_और_कुरान

अगर कुरान और मनुस्मृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाये तो ऐसा लगता है कि जैसे अल्लाह और मनु मे कुछ सांठ-गांठ जरूर थी, क्योंकि दोनो के विचार कई मामले मे एक जैसे ही है!

अल्लाह जहाँ कुरान-16/71 मे कहते हैं कि मुसलमानों को दूसरों पर बड़ाई का अधिकार है, तो मनु भी 1/100 मे लिखते हैं कि ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ है, अतः सारी पृथ्वी उसी की है!

अल्लाह जहाँ स्त्रियों को पर्देयोग्य समझते हैं तो मनु भी मनुस्मृति-9/2 मे लिखते हैं- "अस्वतन्त्रः स्त्रियः कार्याः पुरुषैः स्वैर्दिवानिशम्।"
अर्थात- पुरुष द्वारा अपने स्त्रियों को कभी स्वतंत्रता नही देनी चाहिये।

अल्लाह का मानना है कि एक पुरुष की गवाही दो स्त्रियों के बराबर है, तो मनु ने स्त्रियों की गवाही ही खारिज कर दी है!
अल्लाह तो कम से कम दो स्त्री बराबर एक पुरुष मानते हैं, पर मनु ने तो इन्हे मान्यता ही नही दी है!
मनु कहते हैं-
"एकोऽलुब्धस्तु साक्षी स्याद् बह्वच्य शुच्योऽपि न स्त्रियः।
स्त्रीबुद्धेरस्थिरत्वात्तु दोषैश्चान्येऽपि ये वृताः"
                                             मनुस्मृति-8/77
अर्थात- एक निर्लोभी पुरुष भी साक्षी हो सकता है, परन्तु अनेक स्त्रियां पवित्र होने पर भी साक्षी नही हो सकती, क्योंकि स्त्रियों की बुद्धि चंचल होती है! और अन्य मनुष्य भी जो दोषों से घिरें हैं, साक्षी होने के योग्य नही होते।

            अल्लाह की नजर मे स्त्रियाँ खेती हैं, तो आश्चर्य की बात है कि मनु का भी यही मानना है!
मनुस्मृति-9/33 मे लिखा है-
"क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृत पुमान।
क्षेत्रबीजसमायोगात् सम्भवः सर्वदेहिनाम् ।।"
अर्थात- स्त्री को खेत (क्षेत्र) और पुरुष को बीज (अनाज) रूप माना गया है, खेत और बीज के मिलन से जीवों की उत्पत्ति होती है।
बल्कि मनु ने 9/41 मे कहा है कि पराये खेत मे पुरुष को अपना बीज नही बोना चाहिये, और 9/49 मे कहते हैं-
"येऽक्षेत्रिणो बीजवन्तः परक्षेत्रप्रवापिणः।
ते वै सस्यस्य जातस्य न लभन्ते फलं क्वचित् ।।"
अर्थात- जिसके पास खेत (स्त्री) नही है, वह दूसरे के खेत मे बीज बोता है तो उसमे उत्पन्न धान्य (बालक) को वह पाने का अधिकारी नही है।

अल्लाह स्त्रियों के द्वारा व्यभिचार के प्रति बड़े सख्त थे, तो मनु भी पीछे नही थे, बल्कि अगर स्त्री व्यभिचार कर ले तो मनु ने उसकी शुद्धि का मंत्र भी बताया है!
मनु ने 9/20 मे लिखा है-
अगर कोई स्त्री की पर-पुरुष से व्यभिचार कर लेती है तो उसकी शुद्धि के लिये मनु ने एक मंत्र भी बताया है, जो निम्न है-
"यन्मे माता प्रलुलुभे विचरन्त्यपतिव्रता।
तन्मे रेतः पिता वृक्तामित्यस्यैतन्निदर्शनम् ।।"
इस मंत्र का अर्थ है - 'मेरी माता ने अपवित्रता पूर्वक घूमते हुये पराये घर मे जाकर पर पुरुष की इच्छा की, अतः उसके दूषित रज को मेरे पिता शुद्ध करें'
मनु का यह भी दावा है कि यह वेदमंत्र है।

वैसे कई मामले मे मनु अल्लाह से भी दो कदम बढ़कर थे, जैसे स्त्री विधवा विवाह!
मनु का मानना था कि विधवा का पुनः विवाह नही होना चाहिये! मनु ने बाकयदा 9/65 मे इसे लिखा भी है-
"नोद्वाहिकेषु मन्त्रेषु नियोगः कीर्त्यते क्वचित् ।
न विवाहविधावुक्तं विधवावेदनं पुनः।।"
अर्थात- विवाह के वेदमंत्रों मे नियोग का कही उल्लेख नही है, और न ही विवाह विषयक शास्त्रों मे विधवा विवाह का उल्लेख है।

अल्लाह का मानना था कि जो अपना धर्म छोड़ता है वह जहन्नुम मे जाता है, तो मनु के विचार भी ऐसे ही थे!
अल्लाह ने कुरान-17/39 मे कहा है कि-" अल्लाह के साथ किसी और को न पूजना, अन्यथा नर्क मे डाल दिये जाओगे"
अब मनु ने भी 4/81 मे लिखा है-
"यो ह्यस्य धर्ममाचष्टे यश्चैवादिशति व्रतम् ।
सोऽसंवृतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति।।"
अर्थात- दूसरे धर्म का उपदेश और व्रत का जो पालन करता है, वह उस शूद्र सहित असंवृत नामक अंधकारमय नरक मे जा गिरता है!

अब कुछ लोग सोचेगें कि क्या मनु के समय मे दूसरा धर्म भी था, तो मै बता दूँ कि उस काल मे दस्युधर्म था, जो रक्ष संस्कृति को मानते थे और मनुस्मृति मे इसका व्याख्यान भी है!
मनु ने तो 5/89 मे यह भी कहा है कि जिन्होने अपना धर्म त्याग दिया हो, उन्हे जलाञ्जलि भी नही देनी चाहिये।

बहुविवाह की बात भी केवल कुरान ही नही करता, मनु ने भी एक से अधिक विवाह को उचित माना है!
मनु के अनुसार पहली पत्नि की इच्छा के विपरीत भी पुरुष को दूसरा विवाह करना चाहिये, और अगर पत्नि विरोध करे तो उसे त्याग देना चाहिये!
मनु का यह श्लोक देखें...
"अधिविन्ना तु या नारी निर्गच्छेद्रुषिता गृहात् ।
सा सद्यः संनिरोध्दव्या त्याज्या वा कुलसन्निधौ।।"
                                          मनुस्मृति-9/83
अर्थात- दूसरा व्याह करने पर यदि पहली स्त्री रुष्ठ होकर घर से भागे तो उसे पकड़कर घर मे बन्द कर देना चाहिये, या उसे उसके मायके पहुँचा देना चाहिये।

यही नही मनु तो कुरान की ही तरह बालविवाह को भी जायज मानते थे! मनु ने 9/88 मे लिखा है-
"उत्कृष्ठायाभिरूपाय वराय सदृशाय च।
अप्राप्तामपि तां तस्मै कन्यां दद्याद्यथाविधिः।।
अर्थात- उत्तम कुल और सुन्दर वर मिल जाये तो कन्या के विवाह योग्य न होने पर भी ऐसे वर से उसका विवाह विधिवत कर देना चाहिये।

मनुस्मृति के और भी आदेश कुरान के जैसे ही है, जैसे- मनु 7/96 मे कहते हैं कि जो सैनिक दासी को युद्ध मे जीतकर लाता है, उस पर उसी का अधिकार है!
यह ठीक वैसे ही है, जैसे अल्लाह कहते हैं कि युद्ध मे मिली लौडी हलाल है!
आगे मनु 7/194 मे लिखते हैं कि शत्रु के अन्दर खौफ पैदा करने के लिये उसके अन्न, जलायश जला दो और राज्य मे घेरा डालो, यह ठीक उसी तरह है जिस तरह अल्लाह आदेश देते हैं कि मूर्तिपूजकों की घात मे बैठो, और काफिरों के अन्दर धाक पैदा कर दो!
[07/05, 5:20 PM] ‪+91 94214 50916‬: मुश्किल नहीं है कुछ दुनियाँ में,
तू जरा हिम्मत तो कर।
ख्वाब बदलेंगे हकीकत में,
तू ज़रा कोशिश तो कर॥
आंधियाँ सदा चलती नहीं,
मुश्किलें सदा रहती नहीं।
मिलेगी तुझे मंजिल तेरी,
बस तू ज़रा कोशिश तो कर॥
राह संघर्ष की जो चलता है,
वो ही संसार को बदलता है ।
जिसने रातों से जंग जीती है,
सूर्य बनकर वही निकलता है..
जय भिम
[07/05, 5:21 PM] ‪+91 94214 50916‬: मेरा गीत

चाँद है ना चाँदनी
न किसी के प्यार की है रागिनी
हंसी भी नही है माफ कीजिये
खुशी भी नही है माफ कीजिये
शब्द - चित्र हूँ मैं वर्तमान का
आइना हूँ चोट के निशान का
मै धधकते आज की जुबान हूँ
मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ

कोइ न डराए हमे कुर्सी के गुमान से
और कोइ खेले नही कलम के स्वाभिमान से
हम पसीने की कसौटियों के भोजपत्र हैं
आंसू - वेदना के शिला- लेखों के चरित्र हैं
हम गरीबों के घरों के आँसुओं की आग हैं
आन्धियों के गाँव मे जले हुए चिराग हैं

किसी राजा या रानी के डमरु नही हैं हम
दरबारों की नर्तकी के घुन्घरू नही हैं हम
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नही हैं हम
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नही हैं हम
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं
ये तुम्हारी कुर्सियाँ टिकाऊ नही हैं कभी
औ हमारी लेखनी बिकाऊ नही है कभी
राजनीति मे बडे अचम्भे हैं जी क्या करें
हत्यारों के हाथ बडे लम्बे हैं जी क्या करें
आज ऐरे गैरे- भी महान बने बैठे हैं
जाने- माने गुंडे संविधान बने बैठे हैं

आज ऐसे - ऐसे लोग कुर्सी पर तने मिले
जिनके पूरे - पूरे हाथ खून मे सने मिले
डाकु और वर्दियों की लाठी एक जैसी है
संसद और चम्बल की घाटी एक जैसी है
दिल्ली कैद हो गई है आज उनकी जेब मे
जिनसे ज्यादा खुद्दारी है कोठे की पाजेब मे

दरबारों के हाल- चाल न पूछो घिनौने हैं
गद्दियों के नीचे बेइमानी के बिछौने हैं
हम हमारा लोकतन्त्र कहते हैं अनूठा है
दल- बदल विरोधी कानूनो को ये अंगूठा है
कभी झाड़ू , कभी फूल, कभी चक्कर धारी हैं
कभी वामपन्थी कभी हाथ की बारी हैं

आज सामने खडे हैं कल मिलेंगे बाजू मे
रात मे तुलेंगे सूटकेशों की तराजू मे
आत्मायें दल बदलने को ऐसे मचलती हैं
ज्यों वेश्यांये बिस्तरों की चादरें बदलती हैं
उनकी आरती उतारो वे बडे महान हैं
जिनकी दिल्ली मे दलाली की बडी दुकान है

ये वो घडियाल हैं जो सिन्धु मे भी सूखें हैं
सारा देश खा चुके हैं और अभी भूखे हैं
आसमा के तारे आप टूटते देखा करो
देश का नसीब है ये फूटते देखा करो
बोलना छोडो खामोशी का समय है दोस्तो
डाकुओं की ताजपोशी का समय है दोस्तो

#anu
[07/05, 5:22 PM] ‪+91 94214 50916‬: "उदयपुर में चल रहे फिल्म फेस्टिवल में तामिलनाडू से युवा फिल्मकार दिव्या बोल रही हैं
दिव्या दलित हैं, वे कहती हैं सिर पर टट्टी उठाना हमारा पेशा नहीं है
बल्कि ये समाज द्वारा हमारे ऊपर किया गया ज़ुल्म है
दिव्या ने दलितों द्वारा तमिलनाडू के शहरों में झेले जा रहे भेदभाव पर फिल्म बनाने का तय किया
दिव्या के कुछ मित्रों ने फेसबुक पर अपील कर के कुछ समय के लिये कैमरा और माइक का इन्तज़ाम किया
फिल्म बनाने के लिये दिव्या ने 30 हज़ार रूपये मे अपनी सोने की चेन गिरवी रखी
पैसा कम पड़ने पर दिव्या और उसकी फोटोग्राफर सहेली अक्सर रात को भूखे सो जाते थे
दिव्या की फिल्म कुकुस तैयार हुई
लेकिन भाजपाई, हिन्दुत्ववादी और सवर्ण शक्तियां इस फिल्म के बनने भर से खौफ में डूब गई
पुलिस ने चालीस जगह फिल्म की स्क्रीनिंग रूकवा दी
अन्त में दिव्या ने अपने फिल्म यूट्यूब पर डाल दी
इस फिल्म को पांच लाख लोगों ने देखा
पुलिस ने दिव्या को जेल में डाल दिया
अभी दिव्या की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट द्वारा सात हफ्ते की रोक लगाई गई है
दिव्या कहती है पता नहीं सात हफ्ते बाद क्या होगा
दिव्या की आंखों में दृढ़ता है, चमक है और आक्रोश है
यह सब सुनते हुए मेरा सर झुका हुआ है दिल में टीस उठ रही है और आंखे भरी हुई हैं फ़िल्म देखिये  kakkus.. 👌👌
[07/05, 5:22 PM] ‪+91 94214 50916‬: में जब भी सच लिखती हू ! जी भारी हो जाता है, औरो आँखे छलक ऊठती है ! कोई अपने निजी स्वाथँ के लिए ईतना बढा छलावा कैसे कर लेता है ?? कई बार में शमिँदा हो जाती हू अपने पुरखो करतूतोपर ! सब मोहमाया हमारी है  ! साधारण लोग तो तब भी नही जान पाए और आज भी नही  ! हम भ्रम फैलाने में माहिर है  ! आपको दिखाना कुछ है और करना कुछ  !
[07/05, 5:23 PM] ‪+91 94214 50916‬: *अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की फोटो का विवाद, हामिद अंसारी के काफिले पर हमला और हिटलर की नाजायज हाफपैंटिया औलादों का फासीवाद*
*पाकिस्तान का क़ायदे आज़म, संघियों का फ़ायदे
➖➖➖➖➖➖➖➖
*देश में जब भी बुनियादी मुद्दे उभरने लगते हैं, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्‍टाचार जैसे मुद्दों पर बात होने लगती है और भाजपा बैकफुट पर होती है तभी वो एक छोटा सा मुद्दा उठाते हैं और उसके बाद पूरे देश की राजनीति में हिंदू मुस्लिम की बात होने लगती है। हिटलर की इन नाजायज औलादों ने एक झूठ को सौ बार बोलकर सच बनाने का तरीका अपनाया है।*

ऐसा ही अभी जिन्‍ना विवाद में दिख रहा है। कर्नाटक चुनाव में भ्रष्‍टाचारी रेड्डी बंधुओं के साथ गलबहियां कर रहे संघ परिवार को अब ध्‍यान भटकाने के लिए ऐसे ही मुद्दे की जरूरत थी।

इस घटना के बाद इंटरनेट पर मैसेज फैलाए जा रहे हैं कि तुम मुस्लिम जिन्ना की मूर्ति रखोगे और मदरसों में लादेन की फोटो लगाओगे ( *वैसे आज तक किसी मदरसे में लादने की फोटो का जिक्र भी नहीं सुना* ) तो तुम्हारी देशभक्ति पर क्यों शक ना किया जाए। लोग बिना सोचे समझे इस मैसेज को आगे बढ़ा रहे हैं और समाज में हिंदू मुस्लिम के बीच की खाई को और ज्यादा बड़ा कर रहे हैं।

पहली बात तो यह है कि *जिन्ना धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र बनाना चाहता था और इस मामले में जिन्ना और सावरकर एक विचार थे।* जिन मुस्लिमों ने भारत में रहना चुना वो असल में जिन्ना के खिलाफ ही थे क्योंकि जिन्ना का मानना था कि सभी मुस्लिमों को पाकिस्तान में जाना चाहिए। *आज भारत में शायद ही कोई मुस्लिम होगा जो जिन्ना को सेलिब्रेट करता हो लेकिन rss जैसा इतना बड़ा संगठन भारत का धर्म के आधार पर विभाजन करने की सोच रखने वाले सावरकर को ना सिर्फ सेलिब्रेट करता है बल्कि संसद में उसकी फोटो लगवाता है।*

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मे स्टूडेंट यूनियन उन सब की फोटो लगाती है जिन्हें स्टूडेंट यूनियन की आजीवन सदस्यता दी जाती है। 1938 में जब जिन्ना की फोटो लगी तो उस वक्त देश के हालात बहुत अलग थे और तब जिन्‍ना भी अलग थे। *उसके बाद देश का विभाजन आया और लाखों लोगों की लाशों पर दो देश बने। जाहिर है इसका एक बड़ा जिम्मेदार जिन्ना था और बहुत सारे मुस्लिमों ने जिन्ना की बात ना सुनकर भारत में रहना ही चुना।* अब इतने सालों बाद में जिन्ना की फोटो हटाने की बात करना और वह भी उन लोगों द्वारा जो खुद धर्म आधारित राष्ट्र के पक्षधर हैं और *जिनके सावरकर ने 3 मई 1940 को आजाद मुस्लिम सम्मेलन के पाकिस्तान योजना संबंधी निर्णय पर सम्मेलन को बधाइयां देते हुए लिखा था, हरामखोरी के अलावा कुछ नहीं है।*

जिन्‍ना की फोटो के बहाने इन्‍होने वहां हथियारबंद गुण्‍डा गिरोह भेजकर हामिद अंसारी के काफिले पर अटैक करवाया, वहां की स्‍टुडेण्‍ट यूनियन के प्रतिनिधियों पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया और उसके बावजूद जब छात्रों ने गुण्‍डों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया तो पुलिस ने बिना कार्रवाई उन्‍हें छोड़ दिया। जाहिर है कि *इस कार्रवाई का मतलब मुस्लिम आबादी के मन में दहशत पैदा करना है। फासीवाद की पूरी कार्यप्रणाली ऐसी ही होती है। अगर कोई ये सोचता है कि मुद्दा जिन्‍ना है तो वो गलतफहमी में है। मुद्दा कुछ भी हो सकता है। कल को ये गली चलते व्‍यक्ति को रोककर बोल सकते हैं कि आपकी टोपी मुझे अच्‍छी नहीं लगती या फिर आपके घर में घुसकर आपको पीट सकते हैं और बोल सकते हैं कि वहां बीफ मिला भले ही वहां चिकन हो।* नीचे आपको एक प्रसिद्ध कहानी दे रहे हैं। वो पढिये और सोचिये कि भेड़ि‍या क्‍या करना चाहता है। *इनको अगर आज मुसलमानों पर दहशत फैलाने की आजादी दी जाएगी तो कल को यह बाकी हिंदू आबादी का भी वही हाल करेंगे जो जर्मनी में हिटलर ने किया था इसलिए देश की बड़ी आबादी को आज चेतने की जरूरत है।*

*भेड़िया और मेमना*
एक बार एक भेड़िया किसी पहाड़ी नदी में एक ऊंचे स्थान पर पानी पी रहा था। अचानक उसकी नजर एक भोले-भाले मेमने पर पड़ी, जो पानी पी रहा था। भेड़िया मेमने को देखकर अति प्रसन्न हुआ और सोचने लगा- ‘वर्षों बीत गए, मैंने किसी मेमने का मांस नहीं खाया। यह तो छोटी उम्र का है। बड़ा मुलायम मांस होगा इसका। आह! मेरे मुंह में तो पानी भी आ गया। क्या ही अच्छा होता जो मैं इसे खा पाता।’
और अचानक वह भेड़िया चिल्लाने लगा- ”ओ गंदे जानवर! क्या कर रहे हो? मेरा पीने का पानी गंदा कर रहे हो? यह देखो पानी में कितना कूड़ा-करकट मिला दिया है तुमने?“

मेमना उस विशाल भेड़िये को देखकर सहम गया। भेड़िया बार-बार अपने होंठ चाट रहा था। उसके मुंह में पानी भर आया था। मेमना डर से कांपने लगा। भेड़िया उससे कुछ गज के फासले पर ही था। फिर भी उसने हिम्मत बटोरी और कहा- ”श्रीमान! आप जहां पानी पी रहे हैं, वह जगह ऊंची है। नदी का पानी नीचे को मेरी ओर बह रहा है। तो श्रीमान जी, ऊपर से बह कर नीचे आते हुए पानी को भला मैं कैसे गंदा कर सकता हूं?“

”खैर, यह बताओ कि एक वर्ष पहले तुमने मुझे गाली क्यों दी थी?“ भेड़िया क्रोध में दांत पीसता हुआ कहने लगा।

”श्रीमान जी! भला ऐसा कैसे हो सकता है? वर्ष भर पहले तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। आपको अवश्य कोई गलतफहमी हुई है।“ मेमना इतना घबरा गया था कि बेचारा बोलने में भी लड़खड़ाने लगा।

भेड़िये ने सोचा मौका अच्छा है तो कहने लगा- ”मूर्ख! तुम एकदम अपने पिता के जैसे हो। ठीक है, अगर तुमने गाली न दी थी तो फिर वह तुम्हारा बाप होगा, जिसने मुझे गाली दी थी। एक ही बात है। फिर भी मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। मैं तुमसे बहस करके अपना भोजन नहीं छोड़ सकता।“

यह कहकर भेड़िया छोटे मेमने टूट पड़ा। उसने मेमने की दर्दभरी चीख-पुकार और जीवन दान की प्रार्थना अनसुनी कर दी और मेमने के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

*अगर आपको हमारा मैसेज पसंद आए तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करें*

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

एतमादपुर तहसील के गॉव आहरन में भीम आर्मी का शपथ ग्रहण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ